- धन्वन्तरि पूजा का है विशेष महत्व,ताकि जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और संतोष की प्राप्ति हो सके
- लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुना वृद्धि
कवेन्द्र बहादुर श्रीवास्तव(गायत्री परिवार)
लखनऊ :-कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि का आविर्भाव हुआ था। व्यापारियों, चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान के लिए यह दिन अति शुभ माना जाता है। दीपावली से दो दिन धन्वंतरि जयंती मनाई जाती है। महर्षि धन्वंतरि आयुर्वेद एवं स्वस्थ जीवन प्रदान करने वाले देवता के रूप में भी पूजनीय हैं। जिस प्रकार धन-वैभव के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं, ठीक उसी प्रकार स्वस्थ जीवन के लिए स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि की आराधना की जाती है। धन्वंतरि आरोग्यदाता हैं।भगवान धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बरतन खरीदने की परंपरा है। लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुना वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीदकर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं|
धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन लक्ष्मी-गणेश और कुबेर की भी पूजा की जाती है। इस पावन दिवस में स्वास्थ्य और औषधियों के देवता धन्वंतरि की सबसे महत्त्वपूर्ण पूजा होती है। इन सभी पूजाओं को घर में करने से स्वास्थ्य और मंगल के लिए कामना करते हैं। अपने पूजागृह में जाकर धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का 108 बार उच्चारण करना चाहिए।
स्वास्थ्य के भगवान धन्वंतरि आरोग्य प्रदान हैं, इसलिए इस दिन उनकी पूजा-अर्चना करते करके उनसे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धन्वंतरि की धन्वंतरि की पूजा करने से स्वास्थ्य सही रहता है। पूजा के बाद लक्ष्मी और गणेश का पूजन किया जाता है।
सबसे पहले गणेश जी को दीया अर्पित करते हैं और धूपबत्ती लगाते हैं। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल और मिष्टान्न अर्पण करते हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी का भी पूजन करते हैं। इसके अलावा इस दिन कुबेर देवता की भी पूजा की जाती है। धनतेरस पूजन के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लेना चाहिए और उस पर स्वस्तिक का निशान बनाना चाहिए।
धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी परंपरा है। यदि संभव न हो तो कोई बरतन खरीद सकते हैं। चाँदी चंद्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोषरूपी धन का संचार करता है। संतोष सबसे बड़ा धन है। जिसके पास संतोष है| वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं, उनसे स्वास्थ्य और संतोष की कामना के लिए प्रार्थना की जाती है। इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए मूर्ति खरीदने भी परंपरा है।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर दीपक जलाने की भी परंपरा है | इस प्रथा के पीछे एक लोककथा प्रचलित है। कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक राजा थे, जिनका नाम हेम था।
दैव कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । सात ज्योतिषियों ने जब बालक की कुंडली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा, उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुःखी हुआ और राजकुमार को ऐसे स्थान पर भेज दिया, जहाँ किसी स्त्री की परछाईं भी न पड़े| दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एकदूसरे को देखकर मुग्ध हो गए और उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुँचे| जब यमदूत राजकुमार के प्राण लेकर जा रहे थे, उस समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा, परंतु विधि के विधान के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा|
यमराज से एक यमदूत ने विनती की-“हे! यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है, जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए।” यमदूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले- “हे! दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूँ। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात को जो जीव मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसी कारण लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं, इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीप जलाकर रखने से अकाल मृत्यु नहीं होती है। । इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में दीप जलाते हैं और यमदेवता के नाम पर व्रत भी रखा जाता है।
धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। भगवान धन्वंतरि से स्वास्थ्य और संतोष बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं। इस दिन चाँदी का कोई बरतन या लक्ष्मी-गणेश अंकित चाँदी का सिक्का खरीदना चाहिए। नए बर्तन में दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग समर्पित किया जाता है।
ऋषियों का धर्म, सनातन धर्म- अनंतकाल से है और रहेगा। इस सनातन धर्म के भीतर निराकार, साकार सभी प्रकार की पूजाएँ हैं। ज्ञानपथ, भक्तिपथ सभी हैं। अन्य जो संप्रदाय हैं, आधुनिक हैं। कुछ दिन रहेंगे, फिर मिट जाएँगे।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस
धन्वंतरि त्रयोदशी से जीवन में निरोगता व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो पाता है और राष्ट्रीय जीवन प्रकाशमान हो पाता है। प्रकाश पर्व दीपोत्सव का शुभारंभ धन्वंतरि त्रयोदशी से ही होता है। सारांश में पंचदिवसीय दीपोत्सव (दीपावली) में देवों की प्रधानता (पूजन) क्रमशः (1) भगवान धन्वंतरि (2) भगवान यम (3) देवी महालक्ष्मी (4) गोवर्धन (5) भैया दूज पूजन है, जो भारतीय संस्कृति का आधार है।
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इस प्रकार धनतेरस पर्व के महत्त्व को समझते हुए इसे बहुत श्रद्धा और भक्ति-भाव से मनाना चाहिए, ताकि जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और संतोष की प्राप्ति हो सके |
अमृतकलशहस्ताय, सर्वभयविनाशाय