- क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, आसान भाषा में समझे, क्यों छिड रही UCC पर इतनी रार
- एक देश एक कानून पर आधारित है UCC बिल
- अनुच्छेद 44 के अंतर्गत किसी धर्म या समुदाय के लिए नहीं होगी कोई अलग व्यवस्था
नेशन स्टेशन डेस्क
दिल्ली:- यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता, देश में रहने वाले अनेक धर्म व समुदाय के लोगों को एक बराबर कानून के दायरे में लाने की सिफारिश इस बिल में की गई है,इसके अंतर्गत देश के सभी धर्म और समुदाय के लिए एक कानून ही होगा। जिसे संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत रेखांकित किया गया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल राजनीतिक गलियारों में कई सालों से बहस का मुद्दा बना हुआ है। अनेक पार्टिया अपने अलग-अलग एजेंडे के साथ अपनी बात को रखती आ रहे हैं।वहीं भाजपा सरकार 2014 में सरकार के आने के बाद से ही इस बिल को लागू करने पर जोर दे रही है। फिलहाल 2024 आम लोकसभा चुनाव के आने के बाद इस मुद्दे ने एक बार फिर से गरमागर्मी बढ़ा दी है।
बिल पर क्या है सुप्रीम कोर्ट की रॉय
समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने भी कई पूर्ववर्ती सरकारों से ऐतिहासिक निर्णय लेने के दौरान समान नागरिक संहिता को लागू करने की सिफारिश पर जोर दिया है, साथ ही न्यायालय ने केंद्र की सरकारों को इस मामले में अपना स्पष्ट बयान रखने को भी कह चुका हैं।
मोहम्मद अहमद खास बनाम शाहबानो बेगम के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया था।
और उसी दौरान धार्मिक कानून के बजाय भारत के सीआरपीसी कानून पर जोर दिया था। इस फैसले के दौरान ही न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 44 को बेकार पड़ा हुआ आर्टिकल बनकर रह जाना बताया था।
यहां 150 सालों से लागू है समान नागरिक संहिता
भारत में एक शहर ऐसा भी है जहां पर लगभग 150 सालों से यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया गया था ।वर्तमान में वह राज्य गोवा के रूप में जाना जाता है, संहिता के इतिहास की अगर हम बात करें, तो 1867 के दौरान पुर्तगाली नागरिक संहिता के आधार पर 1966 में नए संस्करण के साथ यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता के रूप में बदलाव कर दिया गया था। वर्तमान में गोवा में सभी धर्म के लिए विवाह तलाक विरासत आदि के संबंध में समान कानून लागू होते हैं।
भारत की आजादी के बाद समान नागरिक संहिता को लेकर सदन में कई नेताओं के अलग-अलग विचार थे कई नेताओं का तो मानना था कि भारत अनेक संप्रदायों वाले देश के रूप में जाना जाता है जहां पर समान नागरिक संहिता लागू करना ठीक नहीं है, जबकि कई नेताओं का मानना था,कि अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है, तो अनेक धर्म व संप्रदायों के बीच धार्मिक सौहार्द स्थापित किया जा सकता है।
सरकार का क्या हैं रुख़
लॉ कमीशन ऑफ इंडिया यानी भारत के विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के संबंध में सार्वजनिक मत व प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं क्योंकि समान नागरिक संहिता भारत में एक अत्यधिक विवादित और राजनीतिक ज्वलंत मुद्दे के रूप में जाना जाता है। संविधान के अनुसार अगर हम देखें तो समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत राज्य की नीति निर्देशक तत्व के अंग के रूप में बताया गया है फिलहाल अभी भारत में व्यक्तिगत कानून जिसमें न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी, और यहूदी भी अपने पर्सनल कानून द्वारा शासित होते हैं व्यक्तिगत कानून धार्मिक आधार व पहचान के आधार पर निर्धारित होते हैं। व्यक्तिगत कानून के अंतर्गत विवाह, तलाक व अन्य कई समस्याओं पर व्यक्तिगत कानून के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं।
Author: nationstation
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