टैबलेट बना परिषदीय विद्यालयों के लिए मुसीबत एक भी मिनट हुए लेट तो अनुपस्थित होंगे मास्टर साहब

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  • टैबलेट के द्वारा स्टाफ ऑनलाइन उपस्थिति का स्क्रीनशॉट शिक्षक ने किया शेयर
  • 1 भी सेकेंड की देरी हुईं तो होगा पूरे दिन का वेतन

गौरव श्रीवास्तव

लखनऊ– सरकार परिषदीय विद्यालयों के सुधार व उपस्थिति की पंजिका ऑनलाइन तरीके से लागू कर रही है। इसी क्रम में विद्यालयों के शिक्षक यदि अपने निर्धारित समय से एक सेकंड की भी देरी से विद्यालय पहुंचते हैं,तो स्वतः उनकी अनुपस्थिति लग जाएगी। जाहिर सी बात है कि, सरकार ने परिषदीय विद्यालयों को उपलब्ध कराए गए टैबलेट्स में आधुनिक सॉफ्टवेयर का उपयोग किया है। जिसके कारण एक-एक सेकंड का हिसाब शिक्षकों से लिया जा रहा है।अगर हम पहले के उपस्थिति पंजिका की बात करें तो ऑफलाइन माध्यम से शिक्षक देरी से पहुंचकर भी अपनी उपस्थिति को दर्शा देते हैं। परंतु इस तकनीक के माध्यम से अब शिक्षक ऑनलाइन मॉनिटरिंग के कंट्रोल में रहेंगे। यदि शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं पहुंचते हैं, अथवा समय से पहले विद्यालय से घर चले जाते हैं। तो उनकी अनुपस्थिति लगना तय है। टैबलेट उपस्थित का एक टीचर ने स्क्रीनशॉट शेयर किया है।जिसमें आप इस प्रक्रिया को काफी आसानी से समझ सकते हैं।

पढ़ाने के अलावा परिषदीय विद्यालयों के शिक्षक और क्या क्या करते हैं।

आप सोच रहें होंगे आखिर मास्टर साहब क्या करेंगे,काम में पढ़ाने का प्रावधान है तो पढ़ाएंगे ही, लेकिन बात यहां कुछ और हो रही है। क्योंकि सरकार परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों से पढ़ाने के अलावा सारे काम ले लेती है।उसके बाद भी कम शिक्षकों के बावजूद बच्चों के शिक्षण कार्य को भी दुरुस्त रखने का दबाव बना रहता है। फिलहाल आम चुनाव हो या किसी सर्वे की जानकारी या फिर हो किसी अन्य सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन इन सभी के लिए सबसे पहले परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों को ही याद कर लिया जाता है। जैसे लगता है। उनको पार्ट टाइम में पढ़ने के लिए रखा गया है। बाकी समय में सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ही रखा जाता है। उसके बाद भी कई विद्यालयों की स्थिति यह है। कि बच्चे तो हैं, शिक्षक नहीं है। कई विद्यालयों की स्थिति ऐसी भी है। जहां पर शिक्षक हैं। लेकिन बच्चे ही नहीं है। कहीं ना कहीं सरकार की अनेक योजनाएं जो किसी भी अभिभावक को अपने बच्चों के शिक्षण कार्य में बाधा बनती योजनाओं के बीच बच्चों को निजी विद्यालयों में भेजने को मजबूर करती हैं। अभिवावक बच्चों को प्राइमरी विद्यालयों में ना भेज कर निजी विद्यालयों में भेजना ज्यादा सुरक्षित महसूस करते है। जिस कारण कई बार परिषदीय विद्यालयों को बच्चों के लिए भी दो-चार होना पड़ता है और कभी-कभी बच्चे होने पर शिक्षकों का टोटा हो जाता हैं। कुल मिलाकर अगर हम अच्छे शिक्षण की बात करें तो सरकार से अपील करना चाहिए कि शिक्षकों को अनेक सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में बिना उपयोग किये सिर्फ़ शिक्षण कार्य ही कराने चाहिए।

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