Dr Madhulika Rai,Deoria |
वो हमसे हैं रूठे हम उनसे खफा हैं
मगर बात करने को जी चाहता है
शर्मो हया हमको रोके है फिर भी
रुख़ से परदा उठाने को जी चाहता है
कहती है धड़कन भी बेताब दिल की
उनको देखें पलट के ये जी चाहता है
हुए तेरी महफ़िल में रुसवा तो क्या
फिर तेरे कूचे में आने को जी चाहता है
बैठ कर साए में ताज के एक दिन
कुछ सुनने सुनाने को जी चाहता है
एक मुद्त हुआ हमको बिछड़े हुए
मिल के रोने रुलाने को जी चाहता है
न हक़ में जमाना न हक़ में हवाएँ
शम्ऐ वफ़ा पर जलाने को जी चाहता है
Author: nationstationnews
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1 thought on “कविता: वो हमसे हैं रूठे….”
Nice one…